जगन्नाथ पूरी से वृंदावन धाम तक पत्थर की मूर्ति स्वयं चल कर आई

The stone statue itself came walking

जगन्नाथ पुरी में बहुत से रहस्य छुपे हुए हैं। इन्हीं रहस्य में एक रहस्य है कि भक्त श्री हरि दास को स्वप्न में भगवान जगन्नाथ दिखे और उन्हें आदेश दिया कि हे भक्त हरिदास तुम यहां रह कर मेरी अनंत समय से भक्ति कर रहे हो तो मेरी इच्छा है कि तुम जगन्नाथपुरी आओ फिर क्या भगवान की इच्छा मानकर श्री हरिदास अपने भक्तों के साथ जगन्नाथ पुरी के लिए निकल पड़े।

पूरा दिन चलने के बाद रात को जब वह रास्ते में पड़िव डाल कर सोने लगे तो उन्हें फिर एक सपना आया और जब जगन्नाथ प्रभु ने आदेश दिया हरिदास जब आप जगन्नाथपुरी जा रहे हो तो वहां मेरा विग्रह परिवर्तित किया जाएगा। जो हर बार 36 वर्ष में एक बार किया जाता है और उस विग्रह परिवर्तित को समुंद्र में प्रवाह कर दिया जाता है, लेकिन इस विग्रह परिवर्तन को आप समुद्र में ना बहाने दीजिएगा। इसे अपने साथ बृंदावन लेकर आईएगा।

प्रभु का आदेश सुनकर हरिदास फिर से अपनी यात्रा पर निकल पड़े और जब जगन्नाथपुरी पहुंचे तो वहां विग्रह परिवर्तन में अभी 4 दिन का समय था। ऐसे में श्री हरिदास ने वहां के पंडितों से विग्रह परिवर्तन को अपने साथ जाने की बात कही। जिससे वह काफी नाराज हो गए। जिसके बाद वह जगन्नाथ पुरी के राजा के पास विग्रह परिवर्तन को लेकर बात करने के लिए पहुंचे।

राजा ने बड़े आदर सम्मान से श्री हरिदास का सम्मान किया, लेकिन जब श्री हरिदास ने अपना आने का कारण बताया तो राजा भी काफी नाराज हो गए। उन्होंने कहा यह कैसे संभव है हम अनादि काल से विद्रोह परिवर्तित को समुद्र प्रवाहित करते हैं। ऐसे में राजा तो क्रोधित हुए। जिसके बाद श्री हरिदास समुद्र के किनारे आकर बैठ गए और अन्न जल का त्याग कर दिया और मन ही मन प्रभु जगन्नाथ शिकायत भी करने लगे कि आप ने ही आदेश दिया कि मेरे विग्रह परिवर्तित हो वृंदावन ले जाओ और आप ही हैं जो राजा को भी ऐसा करने से मना भी कर रहे हैं।

ऐसे में आप ही बताएं मैं क्या करूं। इसके बाद रात बिता और रात के समय राजा को एक सपना आदेश आया। जिसमें प्रभु जगन्नाथ ने उन्हें आदेश दिया कि आप श्री हरि को विग्रह परिवर्तित ले जाने दीजिए। जिसके बाद अगले सुबह राजा स्वयं श्री हरिदास को ढूंढते हुए समुद्र के पास गए और उनसे हाथ जोड़ क्षमा मांगा और विग्रह परिवर्तन को अपने साथ ले जाने की अनुमति दी।

उसके बाद जब विग्रह परिवर्तित हुआ तो राजा विग्रह परिवर्तित के साथ ही और सारी उपहार देकर श्री हरिदास को विदा किया और उससे रथ पर जाकर श्री हरिदास जी को सौंप दिया और कहां महाराजा आप हमारे भगवान को अपने साथ सुरक्षित लेकर जाएगा। जैसा कि जगन्नाथ पुरी से वृंदावन जाने में 7 से 8 महीने लगते थे, लेकिन जैसे ही रात गुजरी श्री हरिदास जगन्नाथ पुरी से वृंदावन पहुंच चुके थे।

ऐसे में उन्हें लेकर उनके भक्तों में भी इस बात की हैरानी हुई कि जिस रास्ते को हम 8 महीने में पूरा करते हैं। वह रात गुजरते ही बीत गया और हम वृंदावन आ गए और प्रभु के आदेश से श्री हरिदास वहीं जगरनाथ घाट पर जगन्नाथ प्रभु का एक भव्य मंदिर बनवाया और विग्रह परिवर्तित को वहीं पर स्थापित किया। जिसका आज हम दर्शन करते हैं। महान हैं प्रभु और उनकी लीलाएं।
जय श्री जगन्नाथ महाराज!

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