ऐसा गांव जहाँ हर घर में है सरकारी नौकरी के अधिकारी, मगर फिर भी….

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आइए आज जानते है ऐसे गांव के बारे में जहां हर एक घर से कोई न कोई एक सदस्य सरकारी नौकरी में है। उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव जहां हर घर के में कोई एक सदस्य अधिकारी है। वह गांव जौनपुर जिले में है और उसका नाम माधोपट्टी गांव है।

इस गांव में जन्म लिए हुए बच्चों का भविष्य पहले ही तय हो चुका रहता है और बड़े होकर वे बच्चे अपने माता-पिता द्वारा बताए मार्ग पर चलकर आईएएस या आईपीएस अधिकारी ही बनते हैं। माधोपट्टी गांव में 75 घर ही मौजूद हैं और हर घर में कोई न कोई व्यक्ति आपको अधिकारी के रूप में जरूर मिल जाएगा। जो अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश में या अन्य दूसरे राज्यों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 1914 में इस गांव का पहला व्यक्ति पीसीएस के लिए चयनित हुआ। उस व्यक्ति का नाम मुस्तफा हुसैन था और उनके पिता मशहूर शायर वामित जौनपुरी थे। पीसीएस में चयन होने के बाद उन्होंने लंबे समय तक अपनी सेवा अंग्रेजी हुकूमत को दी। इसके बाद इंदु प्रकाश सिंह आईएएस के लिए चयनित हुए और वह उस समय 23वीं रैंक में आए थे। इंदु प्रकाश सिंह फ्रांस सहित कई देशों में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं।

इन दो व्यक्तियों के बाद जैसे इस गांव में आईएएस, पीसीएस अधिकारी बनने का एक सिलसिला ही शुरू हो गया। आप यह जान के और भी हैरान हो जाएंगे की इंदु प्रकाश सिंह के बाद उन्हीं के गांव में एक ही घर के चार सगे भाई आईएएस अधिकारी बनने का रिकॉर्ड बनाया। प्रकाश के गांव के ही विनय सिंह बिहार के प्रमुख सचिव थे। जिन्होंने 1955 में परीक्षा पास की थी। ऐसे ही यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है इस सिलसिले में महिलाएं भी पीछे नहीं।

इसी गांव की महिलाएं भी किसी से कम नहीं 1980 में इस गांव से नाता रखने वाली उषा सिंह आईपीएस अधिकारी बनने वाली पहली महिला हैं। ऐसे ही आईपीएस अधिकारी कुंवर चंद्र मोहन सिंह की पत्नी 1943 में आईपीएस अधिकारी बनी।

इस गांव के बच्चे अन्य क्षेत्रों से भी जुड़े हुए हैं अमित पांडे केवल 22 वर्ष के हैं और उन्होंने कई किताबें प्रकाशित की हैं। ऐसे ही इस गांव में विश्व बैंक मनीला में आधिकारिक तौर पर जय सिंह है। कुछ भाभा इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिक हैं तो कुछ राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान इसरो में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

क्या वजह है अधिकारी बनने की

अफसरों के गांव के नाम से प्रसिद्ध है यह गांव केवल अधिकारी बने का ही सपना देखते हैं। माधोपट्टी के डॉक्टर सर्जन सिंह के अनुसार ब्रिटिश हुकूमत में मुर्तजा हुसैन के कमिश्नर बनने के बाद गांव के युवाओं को प्रेरणा स्रोत मिल गया। उन्होंने गांव में शिक्षा की ज्योत जलानी शुरू कर दी और गांव में एजुकेशन लेवल बहुत अच्छा हो गया। हर घर में लोग ग्रेजुएट हैं महिलाएं इसके लिए पीछे नहीं हटती। यहां लिटरेसी रेट 95 है जबकि यूपी का स्थान लिटरेसी रेट 69.72 है।

कहानियां किसी ना किसी सत्य पर आधारित होती हैं और उत्तर प्रदेश के माधोपट्टी गांव का यह सत्य हमें भी अपने बच्चों को प्रेरणा स्रोत के रूप में जरूर सुनाना चाहिए,जिससे वह भी प्रेरित हो।

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