एक ऐसे साइंटिस्ट जिनका दिमाग चुराकर 200 टुकड़े किए गए

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14 मार्च 1879 को जर्मनी में अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म हुआ था और वह एक यहूदी परिवार से ताल्लुक रखते थे। आइंस्टीन बचपन से बहुत ही शर्मीले थे। वे बड़ी उम्र तक भी किसी से भी नहीं बोलते थे। मां-बाप उनके ना बोलने से बहुत परेशान थे। 9 साल की उम्र में उन्होंने अच्छे से बोलना शुरू किया।

बताया जाता है कि उनके ना बोलने से माता-पिता काफी परेशान रहते थे लेकिन एक दिन खाना खाते समय सूप गर्म था तब उन्होंने सूप बहुत गर्म है बोला, जिससे सुनकर माता-पिता बेहद खुश हुए और पूछा कि अब तक वह बोलते क्यों नहीं थे, तो उनका जवाब था अब तक तो सब कुछ सही था इसलिए नहीं बोला।

आइंस्टीन को विज्ञान में दिलचस्पी थी

आइंस्टीन बचपन से ही विज्ञान में बहुत तेज थे। विज्ञान की किताबें पढ़कर स्कूली दिनों में आइंस्टीन सामान्य विज्ञान के सबसे अच्छे ज्ञाता बन गए थे। लड़की यहूदियों के प्रति घृणा को देखते हुए। अल्वर सिटी अमेरिका चले गए और वही वह 18 अप्रैल 1955 में उनका देहांत हो गया।

आइंस्टीन का सिद्धांत

आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत गति के स्वरूप के अध्ययन में एक सहायक सिद्धांत है। गति एक सापेक्ष अवस्था है इसका ज्ञान आइंस्टीग ने कराया। ब्रह्मांड में ऐसा कोई स्थिर प्रमाण नहीं जिसके द्वारा मनुष्य पृथ्वी की निरपेक्ष गति या प्रणाली को निश्चित कर सके। गति हमेशा किसी दूसरी वस्तु को संदर्भ बनाकर उसकी अपेक्षा स्थिति परिवर्तन की मात्रा के आधार पर लगाया जाता है। 1907 में प्रतिपादित उनके इस सापेक्षता सिद्धांत को विशिष्ट सिद्धांत कहा जाने लगा।

दो सौ टुकड़े किए आइंस्टीन के दिमाग का

आइंस्टीन के मरने के बाद बिना परिवार के सहमति के पैथोलॉजिस्ट डॉक्टर थॉमस स्टोल्ट्ज हार्वे ने उनका दिमाग उनकी खोपड़ी से अलग कर दिया। हॉस्पिटल के कहने के बाद भी उन्होंने इसे नहीं लौटाया।
20 सालों तक इसे ऐसे ही रखा 20 सालों बाद आइंस्टीन के बेटे हैंस अल्बर्ट्स की अनुमति के बाद उन्होंने उस पर अध्ययन करना शुरू किया। इस अध्ययन में उन्होंने आस्तीन के दिमाग के 200 टुकड़े कर थॉमस ने उसे अलग-अलग वैज्ञानिकों को भेजा। थॉमस के अध्ययन से यह पता चला कि आस्तीन का दिमाग सामान्य लोगों के दिमाग की तुलना में असाधारण सेल संरचना थी। जिनकी आंखें तक एक बॉक में सुरक्षित रखी गई

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