देशभक्ति के जज्बे ने वर्दी रहित सैनिक को दुश्मनों के दांत खट्टे करने पर मजबूर किया…

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देश को बचाने के लिए बहुत से ऐसे लोग कार्यरत रहते हैं जिन्हें आम जनता बिल्कुल ही नहीं जान पाते हैं और उन्हें आम जनता ही समझा जाता है और वह अपने टैलेंट से अपने देश की हाजत के लिए आंतरिक रूप से हो रही दुर्घटनाओं का संज्ञान देते रहते हैं।

ऐसे ही देश में बहुत कम ही व्यक्ति जानते होंगे सैम मानेकशॉ के बारे में

भारतीय सेना के एक ऐसे अध्यक्ष थे जिनके नेतृत्व में भारत ने 1971 में हुए युद्ध में पाकिस्तान को हराया था। बांग्लादेश को नया देश बनाने में भी सैम मानेकशॉ की अहम भूमिका रही है। द्वितीय विश्वयुद्ध का भी हिस्सा रह चुके हैं मानेकशॉ।

होरमुजजी फ्रामदी जमशेदजी मानेकशॉ उनकी बहादुरी और निडरता के कारण उन्हें बचपन से ही सैम बहादुर के नाम से बुलाया जाता था।इनकी बहादुरी और साहस की वजह से ही भारतीय सेना के पहले जनरल बने। जिनको प्रमोट कर फील्ड मार्शल का पद दिया गया।

सैम का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में हुआ था जब इंदिरा गांधी भारत और पाकिस्तान के बीच जंग को लेकर मानेकशॉ से सवाल-जवाब कर रही थी उसी समय प्रधानमंत्री के हर सवाल का जवाब देती समय मानेकशॉ मैडम की जगह प्रधानमंत्री कह कर पुकारा रहे थे। मैडम शब्द का प्रयोग उन्होंने एक बार भी नहीं किया। इस विषय में मानेक्शॉ से पूछा गया तो उन्होंने कहा मैडम शब्द एक खास वर्ग के लिए प्रयोग किया जाता है इसीलिए मैं प्रधानमंत्री को प्रधानमंत्री ही कह कर बुलाना ठीक समझा।

विश्व युद्ध हो रहा था उस समय वर्मा के मोर्चे पर एक जापानी सैनिक इनके शरीर पर 7 गोलियां उतार दी थी। एक साथी ने उन्हें अपने कंधे पर उठाकर कैंप न ले गये होते तो, शायद वह अपनी जिंदगी से हाथ धो बैठते।

मानेकशॉ से जुड़ी एक और भी बहुत ही दिलचस्प कहानी आइए जानते हैं इसके विषय में….

रणछोड़दास पागी जिनका जन्म गुजरात के एक आम परिवार में हुआ था। बनासकांठा में मौजूद उनका गांव पाकिस्तान की सीमा से लगा हुआ था। रणछोड़दास के परिवार के लोग गाय, बकरी और ऊॅट पार्कर अपना गुजारा करते थे। उनका बचपन और जवानी इसी में गुजर गया।जब वह 50 साल के रहे होंगे, तब उनकी जिंदगी एकदम से बदल गई। जिस दौरान लोग अपने घरों में चारपाई पर बैठ कर आराम करते हैं उस दौरान पागी के एक विशेष हुनर नके कारण उन्हें बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला द्वारा पुलिस गाइड नियुक्त किया गया।

बताया जाता है कि रणछोड़दास पागी का एक खास हुनर था। जिसके जरिए वह ऊॅट के पैरों के निशान देखकर बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार थे इतना ही नहीं वह इंसानों के पैरों के निशान देखकर उनके वजन, उम्र और कितनी दूर तक आगे गए होंगे इसका भी अंदाजा लगाकर बता देते थे। पागी द्वारा लगाए अनुमान लगभग एकदम सटीक बैठे थे। उनके इसी हुनर के कारण उन्हें भारतीय सेना का हिस्सा बनाया गया है।

भारतीय सेना में स्काउट के रूप में भर्ती किया गया और 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध से ठीक पहले पाकिस्तानी सेना ने कच्छ क्षेत्र के कई गांव पर कब्जा कर लिया, ऐसे में रणछोड़ दास को भारतीय सेना ने जिम्मेदारी थी कि वह दुश्मन का पता लगाकर उन्हें बताएं कि कितने आदमी आए हैं और कितनी दूर तक गए हैं।

रणछोड़दास ने अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभाया और जंगल के अंधेरे में छिपे करीब बाहर 1200 पाकिस्तानी सैनिकों का पता लगाकर पागी उन पर भारी पड़ते हैं। रेगिस्तान के रास्तों पर अपनी पकड़ के कारण पागी ने सेना को निर्धारित समय से 12 घंटे पहले यथा स्थान पहुंचा दिया।

इस मिशन के लिए मानेक्शॉ ने उन्हें खुद चुना था। मानेकशॉ ने ही रणछोड़दास के लिए सेना में पागी का नाम विशेष पद पर बनाया। पागी का मतलब ऐसा गाइड जो पैरों के निशान पढ़ लेता हो और जो रेगिस्तान में भी पैरों के निशान को पढ़ने का हुनर रखता हो।

1965 के युद्ध के बाद 1971 के युद्ध में पागी की अहम भूमिका रही पागी को सेना के मार्गदर्शक के रुप में रखने के साथ-साथ मोर्चे पर गोला बारूद लाने की जिम्मेदारी भी दी जाती थी। पाकिस्तान के पाली नगर में तिरंगा लहराने की जीत में पागी का सबसे अहम भूमिका रहा। इस जीत के बाद मानेकशॉ ने उन्हें अपनी जेब से ₹300 का नगद पुरस्कार भी दिया।

इसके अलावा उनके योगदान के लिए संग्राम पदक, पुलिस पदक और ग्रीष्मकालीन सेवा पदक से उन्हें सम्मानित किया गया। पागी के योगदान के कारण मानेकशॉ ने अपने अंतिम समय में उन्हें याद किया। यहीं नहीं जब मानेकशॉ को तमिलनाडु के अस्पताल में भर्ती कराया गया था तब उस समय उनकी जुबान पर केवल पागी का नाम ही रहता था।

रणछोड़दास पागी 2009 में सेना से सेवानिवृत्त लें ली थी। उस वक्त उनकी उम्र 108 वर्ष की था। रणछोड़ दास की 112 वर्ष की आयु में 2013 में मृत्यु हो गई। यह पहली बार हुआ जब किसी आम आदमी के नाम पर किसी बॉर्डर का नाम रखा गया। कच्छ बनासकांठा सीमा के सुईग्राम के पास बीएसएफ बॉर्डर का नाम रणछोड़दास पागी रखा गया है। जहां इनकी एक प्रतिमा भी लगाई गई है।

आज के बहुत से युवा ऐसे क्रांतिवीर देशभक्त और मार्गदर्शक को जानते तक नहीं हैं। इस कहानी का उद्देश्य आपको ऐसे ही देश वीरों के बारे में जानकारी देना है,इसे आप और लोगों में भी शेयर करें।

 

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