शवों के दाह संस्कार के समय सिर पर जोर से डंडा मारा जाता है आखिर ऐसा क्यों होता है यह सब के मन में उठता होगा हिंदू धर्म के प्रसिद्ध गरुण पुराण में मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक की कहानी का वर्णन किया गया है इसमें बताया गया है कि मृत्यु के दाह संस्कार के समय परिवार द्वारा सिर पर मारने से मरने वाले की आत्मा को शांति सकती है इस काल में यह अहम क्रिया होती है।
मुखाग्नि देने के बाद बांस के डंडे में लोटा बांधकर उसके सिर पर घी डाला जाता है ताकि मृतक का सिर अच्छे से जल जाए। ऐसा करने से पीछे की पूरी वजह है कि सिर की हड्डी, शरीर की हड्डियों से ज्यादा मजबूत होती है जो अच्छे से जल नहीं पाता है। जिसके कारण सिर पर घी डाला जाता है ताकि खोपड़ी पूरी तरीके से जल जाए। अगर खोपड़ी पूरी तरीके से नहीं जलता है तो मृतक को अगले जन्म में कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इसके पीछे यह भी मान्यता है कि सिर में ब्रह्मा जी का वास होता है इसलिए कपाल क्रिया करने से शरीर को पूरी तरह से मुक्ति मिल जाती है। इसके लिए मस्तिष्क में स्थित भ्रमेंद्र पंच तंत्र पूरी तरह से विलीन होना जरूरी है, इसलिए दाह संस्कार करते समय कपाल क्रिया को करना जरूरी माना जाता है।
इसके इलावा ये बात तो आपने जरूर सुनी होगी कि अघोरी अपनी सिद्धियां और तंत्र विद्या को हासिल करने के लिए कपाल का ही इस्तेमाल करते है। यदि कोई अघोरी अपने साथ मृतक का कपाल ले जाये तो उस मृतक के लिए मोक्ष पाना नामुमकिन हो जाता है इसलिए कपाल क्रिया करना जरूरी माना जाता है।