भारत ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त की है जिसमें उसे पता चला है कि हिन्द महासागर के समुद्र तल से 6 किलोमीटर की गहराई में मौजूद बेशकीमती धातु से भरा खजाना है तो जाहिर सी बात है कि भारत इसकी खुदाई करेगा और इस खुदाई के लिए अत्याधुनिक तकनीक की आवश्यकता होगी और इस आवश्यकता के लिए भारत ने उस दिशा में काम करने शुरू कर दिए हैं। महासागर में जो मिनिरल मौजूद है उनमें से कई के आयात पर भारत हर साल करोड़ों डॉलर खर्च करता हैं और उससे बड़ी बात है कि कहीं मिनिरल तो ऐसे हैं जिन पर चीन ने लगभग नियंत्रण बना रखा है। यह खजाना मध्य हिंद महासागर में है और इस जगह पहुंचने के लिए चेन्नई से जहाज से 1 सप्ताह का सफर करना होगा।
अप्रैल में यहां चेन्नई से 2 वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और टेक्नीशियनो का एक दल स्वदेशी माइनिंग मशीन वाराह 1 लेकर पहुंचा है। इस मशीन को समंदर की सतह तक ले जाया गया और वहां पर बेशकीमती खनिज संपदा का भंडारन होने का अनुमान लगा। अब इसकी खुदाई में प्राइवेट सेक्टर की मदद लेने की भी तैयारी हो रही है जिस इलाके में यह खनिज संपदा पाई गई है उसके 75000 वर्ग किलोमीटर के इलाके में भारत का एकाधिकार है और 2002 में यूनाइटेड नेशन के संस्था इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी ने भारत को आवंटित किया हुआ है।
इसकी खुदाई की मंजूरी केंद्रीय कैबिनेट ने पिछले हफ्ते ही दी है। इसके तहत 2024 से 2025 तक की माइनिंग सिस्टम तैयार होना है।खुदाई के लिए ब्लूप्रिंट तैयार किया गया उसमें समंदर के खजाने की खुदाई के लिए 6000 मीटर नीचे तक पनडुब्बी भेजने की योजना है।जिसमें 2 वैज्ञानिक और एक पायलट भी होंगे। इसके अलावा समुद्र और कई मशीनें भेजी जाएंगी। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव और बेंगलूरू स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडीज के डायरेक्टर शैलेश नायक ने ईटी से कहा है की इलेक्ट्रॉनिक युग में निकिल और कोबाल्ट बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस के अनुमान के मुताबिक खनिज का खजाना औसतन कम से कम 11000 करोड डॉलर का है।