मनुष्य का जीवन जितना सत्य है, उतना ही बड़ा सत्य है उसकी मृत्यु। जो इस मृत्यु लोक में आया है, एक ना एक दिन उसकी मृत्यु अवश्य होगी। परन्तु मनुष्य ये बात जानते हुए भी इस सच्चाई से भागता है और पैसा कमाने के लिए अपने जीवन में ना जानें कितने पापकर्म करता है। जिसका कारण है मृत्यु के इस रहस्य की जानकारी ना होना।
जानकारी न होने की वजह से मनुष्य बुराई के रास्ते पर निडर होकर चल रहा है उसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वो नर्क जाएगा या स्वर्ग उसे इस दुनिया मे जिस चीज़ की लालच है वो चाहिए तो चाहिए चाहे उसके लिए कोई भी पाप करना पड़े मनुष्य उससे पीछे नहीं हटता। अपने हठधर्मी के आगे मनुष्य अंधा हो चुका है उसे सिर्फ अपने लिए दिखता है।
मृत्यु के बाद पाप कर्म के कारण उसकी आत्मा को ना जानें कितने कष्ट भोगने पड़ते हैं। जिसका वर्णन हिन्दू धर्म के 18 महापुराणों में से एक गरुड़ पुराण में किया गया है। तो आइए जानते हैं मृत्यु के बाद आत्मा के साथ क्या होता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह मनुष्य बोलना बंद कर देता है, उसकी सभी इंद्रियां शिथिल पड़ जाती हैं। जब अंतिम समय निकट आता है तब परमात्मा के द्वारा उसे एक दिव्य दृष्टि मिलती है। जिससे वह सारे संसार को एक रूप में देखने लगता है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मृत्यु के समय दो यमदूत आते हैं, जोकि देखने में बड़े ही भयानक होते हैं।
यदि मरने वाले प्राणी ने पुण्य कर्म किया है तो वह आसानी से अपने प्राण त्याग देता है। परन्तु यदि वह पापी होता है तो वह यमदूत के भय से ग्रस्त होकर बड़े ही कष्ट से अपने प्राण त्यागता है। तत्पश्चात यमदूत उसे यमलोक ले जाते हैं।
यमलोक का रास्ता अंधेरे और गर्म बालू से भरा होता है। फिर यमलोक पहुंचने पर उसे यातनाएं दी जाती हैं। फिर उसे यमराज के कहने पर 13 दिन तक अपने उत्तम कार्यों को संपन्न करने हेतु आकाश मार्ग से फिर उसके घर पर छोड़ दिया जाता है। घर आकार वह जीवात्मा पुन: अपने शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करती है। किन्तु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती है और भूख-प्यास के कारण रोता रहता है।
गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत व्यक्ति के वंशजों को 10 दिनों तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। क्योंकि पिंडदान से ही आत्मा को चलने की शक्ति प्राप्त होती है। तत्पश्चात मृत्यु के 13वें दिन यमदूत आत्मा को फिर से पकड़ लेते हैं। और फिर शुरू हो जाती है उसकी यमलोक की यात्रा। इस सफर में आत्मा को 47 दिनों तक वैतरणी नदी पार करनी होती है। इस तरह भूख-प्यास से बैचेन आत्मा यमलोक में पहुंचती है।
यमलोक में भगवान चित्रगुप्त उस प्राणी के सभी कर्मों का लेखा-जोखा यमराज को देते हैं। फिर उस आधार पर धर्मराज यह निश्चय करते हैं कि पापी आत्मा को किस नर्क में भेजा जाएगा। इसलिए हम लोगों को जीवन में धन-दौलत का लालच छोड़कर सच्चाई के रास्ते पर ही चलना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि हमारी इस पोस्ट को पढ़ने के बाद ही आपको इन बातों की जानकारी होगी। हो सकता है कि आप पहले से भी इन बातों को जानते होंगे बावजूद इसके आप अपने आपको से अवगत होंगे उन्हें शेयर कर समझाएं उन्हें बताएं कि उनकी लालच उन्हें किस दलदल में ले जा सकती है।