एक नई सोच एक नई दिशा……. मां के तेरहवीं भोज के पैसे को दिया स्कूल बनाने के लिए दान

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हिंदू संस्कृति के अनुसार अगर कोई इंसान मरता है तो उसकी मृत्यु के पश्चात तेरहवीं का भोज दिया जाता है। जिससे उसकी आत्मा को शांति मिले,ऐसी मान्यता है हमारे धर्म संस्कृति और ग्रंथों में भी इसके अनेक वर्णन मिलेंगे, लेकिन जहां लोग मृत्यु के बाद तेरहवीं का भोज देते हैं वही एक लड़के ने अपनी मां के मृत्यु के बाद तेरहवीं के भोज में लगने वाले पैसे को स्कूल बनवाने के लिए दान में दे दिया।

बिहार के बेगूसराय के मोहनपुर गांव में एक परिवार रहता है उस परिवार में राजकिशोर सिंह नाम का एक लड़का है। जिन्होंने अपनी माता की मृत्यु के बाद समाज में एक संदेश दिया और इस संदेश को नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना दिया। अपनी मां के निधन के बाद गांव वालों को दिए जाने तेरहवीं भोज को न देकर गांव में जर्जर हो चुके हाई स्कूल की दीवारों को बनाने के लिए 10 लाख रुपए दे दिए यह स्कूल काफी ज्यादा खराब हो चुका था।

अगर ऐसे ही लोग अपने पैसों को समाज के कार्य में लगाये यह समाज विकास करेगा और जब समाज विकास करेगा तो देश विकास करेगा देश विकास करेगा तो हम विकास करेंगे और हमारी आने वाली पीढ़ी भी विकास करेंगी। उनके इस फैसले ने सभी को इस सामाजिक परंपरा को तोड़ने और एक नई दिशा दिखाने का काम किया है।

राज किशोर सिंह की 50साल की मां जानकी देवी का निधन हो गया था। उसके बाद उनके गांव में मृत्यु भोज कराने की परंपरा थी, 13 दिनों के बाद यह भोज देना था लेकिन राज किशोर के दिमाग में इस पैसे को मृत्युभोज में खर्च करने से ज्यादा अच्छा स्कूल की दीवारों को बनाने का विचार आया।

उन्होंने गांव के लोगों की बैठक बुलाई, उस बैठक में उन्होंने अपने विचार बताए। उनके इस फैसले से गांव वालों ने उनकी खूब तारीफ की और इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके बाद राजकिशोर ने भोज की जगह उन पैसों को अपने गांव की स्कूल की दीवार बनवाने के लिए दान दे दिया।

राज किशोर सिंह के इस कार्य से हमें भी सीख लेना चाहिए और ऐसे कार्यक्रमों के ऊपर खर्च किए गए पैसों को समाज के विकास में लगाना चाहिए। इसके लिए हमें दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए। इस प्रेरणास्रोत कहानी को आप ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि और लोग भी राजकिशोर की तरह बन पाए और अपने समाज का कल्याण कर सकें।

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